आज के सिनेमा के बदलते दौर में, जहाँ दर्शक कुछ नया भी देखना चाहते हैं और पुरानी यादों में भी खो जाना चाहते हैं, एक सच्ची और दिल को छू लेने वाली प्रेम कहानी का आना किसी उत्सव से कम नहीं है। मोहित सूरी की हालिया रोमांटिक ड्रामा, ‘सैयारा’, ठीक इसी तरह की एक फिल्म बनकर उभरी है, जिसने बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया है और अपने नए चेहरों, अहान पांडे और अनीत पड्डा के दमदार अभिनय और रूह को छू लेने वाले संगीत से पूरे देश का दिल जीत लिया है। फिल्म की भावनात्मक गहराई और एक ऐसी प्रेम कहानी, जो याददाश्त खोने जैसी दर्दनाक सच्चाई का सामना करती है, ने दर्शकों के दिलों में एक खास जगह बना ली है।
लेकिन जैसे-जैसे फिल्म सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ रही है, सोशल मीडिया और फिल्म मंचों पर एक नई चर्चा ने जन्म लिया है। दुनिया भर के सिनेमा प्रेमियों ने ‘सैयारा’ और 2004 की एक बेहद मशहूर दक्षिण कोरियाई क्लासिक फिल्म, ‘अ मोमेंट टू रिमेंबर’ के बीच कुछ चौंकाने वाली समानताओं की ओर इशारा किया है। इस चर्चा ने एक दिलचस्प सवाल खड़ा कर दिया है जो रचनात्मकता की प्रकृति पर सोचने पर मजबूर करता है: क्या ‘सैयारा’ उस क्लासिक फिल्म को एक श्रद्धांजलि है, उससे प्रेरित एक अनौपचारिक रूपांतरण है, या यह एक अद्भुत रचनात्मक संयोग है जहाँ दुनिया के दो अलग-अलग कोनों में बैठे फिल्मकारों ने एक ही सार्वभौमिक और दिल तोड़ने वाले विषय को अपनी-अपनी तरह से महसूस किया? इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए, हमें पहले दोनों कहानियों की आत्मा में उतरना होगा।
‘सैयारा’ की कहानी का दर्द और संगीत
मोहित सूरी, जिनका नाम ही इंटेंस और संगीतमय रोमांस का पर्याय बन चुका है, ‘सैयारा’ के साथ अपने जाने-पहचाने अंदाज़ में वापसी करते हैं, जो दर्शकों को पुरानी यादों में ले जाता है। फिल्म हमें दो बिल्कुल अलग किरदारों से मिलवाती है: कृष कपूर, जिसे अहान पांडे ने एक गुस्सैल और जुनूनी ऊर्जा के साथ निभाया है, और वाणी बत्रा, जिसे अनीत पड्डा ने एक नाजुक लेकिन मजबूत लड़की के रूप में पर्दे पर उतारा है। कृष एक बागी संगीतकार है, जो अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहा है। फिल्म में उसका पहला सीन ही एक पत्रकार के साथ मारपीट का है, जो उसके संगीत को नज़रअंदाज़ कर देता है। वह महत्वाकांक्षा और गुस्से का एक तूफ़ान है। वहीं दूसरी ओर, वाणी एक शांत और शर्मीली कवयित्री है, जो शादी के मंडप में धोखा खाने के दर्द से गुज़र रही है। वह अपनी डायरी में अपने गीत और विचार लिखती है, और उसकी यह आदत उसकी एक गहरी कमजोरी की ओर भी इशारा करती है—वह अक्सर चीजें भूल जाती है।
जब इन दोनों की दुनिया टकराती है, तो एक जुनून भरी और सब कुछ भुला देने वाली प्रेम कहानी शुरू होती है। उनका रिश्ता सिर्फ़ प्यार का नहीं, बल्कि रचनात्मकता का भी है; वाणी के शब्द कृष की धुनों में ढल जाते हैं, और उनका यह साथ न केवल उनके प्यार को परवान चढ़ाता है, बल्कि कृष को स्टारडम की ऊँचाइयों तक भी ले जाता है। कृष उसे खुलकर हँसने का हौसला देता है, और वाणी उसकी ज़िंदगी में सुकून लाती है। लेकिन उनके इस खूबसूरत सफ़र में एक दर्दनाक और दिल दहला देने वाला मोड़ आता है: वाणी को अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर नाम की बीमारी हो जाती है। यह बीमारी उन यादों को ही धीरे-धीरे मिटाने लगती है, जिन पर उनकी प्रेम कहानी की नींव रखी गई थी। फिल्म, जिसमें आलम खान, गीता अग्रवाल और वरुण बडोला (कृष के शराबी पिता के रूप में) ने भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाई हैं, इस जोड़े के उस संघर्ष को दिखाती है जहाँ वे यादों के धुंधलाने के साथ-साथ अपने प्यार को बचाने की कोशिश करते हैं।
दक्षिण कोरियाई क्लासिक की गूंज: ‘अ मोमेंट टू रिमेंबर’ की अमर कहानी
PIC CREDIT : IMDB
कई दर्शकों के लिए, खासकर जो एशियाई सिनेमा से परिचित हैं, ‘सैयारा’ की कहानी में एक जानी-पहचानी गूंज सुनाई दी। 2004 में आई दक्षिण कोरियाई फिल्म ‘अ मोमेंट टू रिमेंबर’, जिसका निर्देशन जॉन एच. ली ने किया था, सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक मील का पत्थर है। इसे दुनिया भर में अपनी दिल तोड़ने वाली और खूबसूरत कहानी के लिए क्लासिक का दर्जा प्राप्त है। यह फिल्म किम सु-जिन (सोन ये-जिन) और चोई चुल-सू (जंग वू-सुंग) की अविस्मरणीय कहानी है। सु-जिन एक सफल फैशन डिजाइनर है, और चुल-सू एक साधारण बढ़ई है जो आर्किटेक्ट बनने का सपना देखता है।
उनकी प्रेम कहानी एक किराने की दुकान पर एक प्यारी सी गलतफहमी से शुरू होती है और सामाजिक अंतर के बावजूद परवान चढ़ती है। वे एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते हैं, शादी करते हैं और एक सपनों का घर बनाते हैं। लेकिन उनकी दुनिया उस वक्त बिखर जाती है, जब सिर्फ़ 27 साल की उम्र में सु-जिन को पता चलता है कि उसे अल्जाइमर जैसी दुर्लभ बीमारी है, जो कम उम्र में होती है। इसके बाद फिल्म एक ऐसे प्यार की दर्दनाक दास्ताँ बन जाती है, जो यादों के मिटने के बावजूद ज़िंदा रहने के लिए लड़ता है। यह फिल्म उस गहरे सवाल को उठाती है कि क्या प्यार सिर्फ़ साझा यादों में बसता है या दिल की उस अटूट वफ़ादारी में, जो कभी कुछ नहीं भूलता—एक ऐसा विषय जो ‘सैयारा’ की कहानी के साथ आश्चर्यजनक रूप से मेल खाता है।
अचूक समानताएं और साझा भावनात्मक आत्मा
जब ‘सैयारा’ और ‘अ मोमेंट टू रिमेंबर’ को एक साथ रखकर देखा जाता है, तो दोनों की कहानियों का ढाँचा इतना मिलता-जुलता है कि इसे महज़ एक संयोग कहना मुश्किल हो जाता है। यह समानताएं सिर्फ़ सतही नहीं हैं, बल्कि दोनों कहानियों की भावनात्मक आत्मा तक जाती हैं।
सबसे बड़ी समानता दोनों कहानियों का केंद्रीय दुख है: दोनों ही एक युवा, रचनात्मक और ज़िंदादिल महिला के इर्द-गिर्द घूमती हैं, जिसकी ज़िंदगी और उसका रिश्ता अर्ली-ऑनसेट अल्जाइमर की वजह से एक दुखद मोड़ ले लेता है। यह खास और दुर्लभ बीमारी दोनों फिल्मों में सिर्फ़ एक कहानी का हिस्सा नहीं, बल्कि मुख्य विलेन है। इसके अलावा, दोनों ही कहानियाँ उस पुरुष साथी के नज़रिए से आगे बढ़ती हैं, जिसे अपनी प्रेमिका की देखभाल करनी पड़ती है और उस असहनीय दर्द से गुज़रना पड़ता है, जब वह अपनी आँखों के सामने अपनी मोहब्बत को उनका अतीत, उनकी पहली मुलाकात और यहाँ तक कि उसका नाम भी भूलते हुए देखता है।
भले ही किरदारों के पेशे और उनकी पृष्ठभूमि को भारतीय और कोरियाई संस्कृति के हिसाब से ढाला गया हो—जैसे भारत में एक संगीतकार और कवयित्री, और दक्षिण कोरिया में एक बढ़ई और फैशन डिजाइनर—लेकिन किरदारों के मूल स्वभाव में काफी समानता है। कृष और चुल-सू दोनों ही शुरुआत में थोड़े गुस्सैल और अपनी दुनिया में रहने वाले दिखाए गए हैं, जो एक नरम दिल और कलात्मक लड़की के प्यार में पड़कर बदल जाते हैं। प्यार और याददाश्त के बीच की यह जंग, दिल की याद और दिमाग के भूलने की यह लड़ाई, दोनों ही फिल्मों की वह शक्तिशाली, साझा धड़कन है जो लगातार महसूस होती है।
आधिकारिक पक्ष और कहानी की एक दिलचस्प विरासत
इन समानताओं के बावजूद, यह जानना ज़रूरी है कि फिल्म निर्माताओं की ओर से इस बात की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की गई है कि ‘सैयारा’ एक आधिकारिक रीमेक है। फिल्म की कहानी का श्रेय लेखक संकल्प सदाना और निर्देशक मोहित सूरी को दिया गया है, जिन्होंने इसे हमेशा एक समकालीन भारतीय प्रेम कहानी के रूप में पेश किया है, जिसे यहाँ के दर्शकों की भावनाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसे एक मौलिक रचना के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जो मोहित सूरी की ‘आशिकी 2’ जैसी भावनात्मक और संगीतमय फिल्मों की दुनिया में बिल्कुल फिट बैठती है।
हालांकि, इस कहानी का इतिहास और भी ज़्यादा जटिल और वैश्विक रूप से जुड़ा हुआ है। 2004 की दक्षिण कोरियाई ब्लॉकबस्टर ‘अ मोमेंट टू रिमेंबर’ वास्तव में खुद एक रूपांतरण है। यह फिल्म 2001 के एक जापानी टीवी ड्रामा ‘प्योर सोल’ पर आधारित है। उस जापानी सीरीज़ की कहानी भी एक शादीशुदा महिला के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसे कम उम्र में अल्जाइमर हो जाता है। यह जानकारी इस पूरी बहस को एक नया आयाम देती है और यह साबित करती है कि यादों से परे प्यार का विषय एक सार्वभौमिक विषय है, एक इतनी शक्तिशाली कहानी जिसे एशिया में बार-बार, जापान से लेकर दक्षिण कोरिया और अब शायद भारत तक, नए सिरे से कहा गया है।
अंत में, चाहे ‘सैयारा’ एक अनौपचारिक रूपांतरण हो, एक प्रेरित श्रद्धांजलि हो, या रचनात्मक विचारों का एक अद्भुत संगम, इसकी अभूतपूर्व सफलता को नकारा नहीं जा सकता। फिल्म ने दर्शकों के दिलों में एक गहरी छाप छोड़ी है, जिन्होंने इसकी भावनात्मक यात्रा, इसके चार्टबस्टर संगीत और अहान पांडे और अनीत पड्डा के दिल को छू लेने वाले अभिनय को तहे दिल से अपनाया है। शायद कुछ सबसे खूबसूरत कहानियाँ किसी एक देश या एक फिल्मकार की नहीं होतीं। वे पूरी दुनिया की होती हैं, और उनकी किस्मत में ही बार-बार कहा जाना लिखा होता है, ताकि हर बार वे एक नई आवाज़, एक नई सांस्कृतिक अभिव्यक्ति और दिलों को तोड़ने और फिर से जोड़ने के लिए एक नई पीढ़ी को ढूँढ सकें।
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