यूपी कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: डिजिटल अरेस्ट मामले में पहली बार 7 साल की सजा

लखनऊ की कोर्ट ने डिजिटल अरेस्ट मामले में पहली बार साइबर ठग को 7 साल की सजा सुनाई। केजीएमयू की डॉ. सौम्या गुप्ता से 85 लाख रुपये की ठगी करने वाले आरोपी को सजा। जानिए पूरा मामला और साइबर क्राइम से बचाव के उपाय।

डिजिटल अरेस्ट मामले में पहली बार 7 साल की सजा देवाशीष को Pic Credit : News18

परिचय: डिजिटल अरेस्ट और साइबर ठगी का बढ़ता खतरा

डिजिटल युग में साइबर ठगी (Cyber Fraud) और डिजिटल अरेस्ट (Digital Arrest) जैसे अपराध तेजी से बढ़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की एक विशेष सीजेएम कस्टम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें डिजिटल अरेस्ट के मामले में पहली बार किसी साइबर अपराधी को 7 साल की सजा दी गई। यह मामला केजीएमयू की वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. सौम्या गुप्ता से 85 लाख रुपये की ठगी से जुड़ा है। इस लेख में हम इस घटना के बारे में विस्तार से जानेंगे और साइबर अपराध से बचाव के उपायों पर चर्चा करेंगे।

क्या है डिजिटल अरेस्ट और कैसे हुआ अपराध?

15 अप्रैल 2024 को डॉ. सौम्या गुप्ता को एक फोन कॉल प्राप्त हुआ, जिसमें कॉलर ने खुद को कस्टम अधिकारी बताया। उसने दावा किया कि उनके नाम से एक कार्गो पार्सल में जाली दस्तावेज और ड्रग्स पकड़े गए हैं। कॉल को एक फर्जी सीबीआई अधिकारी को ट्रांसफर किया गया, जिसने डॉक्टर को 7 साल की जेल की धमकी दी। डर और मानसिक दबाव में डॉ. गुप्ता ने अपनी निजी जानकारी, जैसे बैंक खाता और पैन कार्ड डिटेल्स, साझा कर दीं।

आरोपी ने 10 दिनों तक डॉक्टर को “डिजिटल अरेस्ट” में रखा, यानी उन्हें फोन और वीडियो कॉल्स के जरिए मानसिक रूप से नियंत्रित किया। इस दौरान चार अलग-अलग बैंक खातों में 85 लाख रुपये ट्रांसफर करवाए गए। यह साइबर ठगी का एक सुनियोजित मामला था, जिसमें फर्जी आधार, सिम कार्ड और बैंक खातों का इस्तेमाल किया गया।

कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

लखनऊ की विशेष सीजेएम कस्टम कोर्ट ने इस मामले में तेजी से कार्रवाई की। जांच की जिम्मेदारी साइबर क्राइम थाना, लखनऊ को सौंपी गई। इंस्पेक्टर ब्रजेश कुमार यादव ने तकनीकी साक्ष्यों और मजबूत पैरवी के आधार पर आरोपी देवाशीष राय को 5 मई 2024 को गिरफ्तार किया। वह आजमगढ़ के मसौना गांव का रहने वाला है।

2 अगस्त 2024 को पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की, और मात्र 14 महीनों में ट्रायल पूरा हुआ। 17 जुलाई 2025 को कोर्ट ने देवाशीष को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 419, 420, 467, 468, 471 और आईटी एक्ट की धारा 66D के तहत दोषी ठहराया। उसे 7 साल की कठोर कारावास और 68,000 रुपये के जुर्माने की सजा सुनाई गई। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के डिजिटल अपराध समाज में सरकारी एजेंसियों के नाम पर डर पैदा करते हैं, और इनके खिलाफ सख्त सजा जरूरी है।

साइबर ठगी से बचाव के उपाय

  1. अनजान कॉल्स से सावधान रहें: अगर कोई खुद को सरकारी अधिकारी बताकर धमकाए, तो तुरंत पुलिस से संपर्क करें।
  2. निजी जानकारी साझा न करें: बैंक खाता, पैन कार्ड, या आधार डिटेल्स कभी भी फोन पर न दें।
  3. जागरूकता बढ़ाएं: डिजिटल अरेस्ट जैसे अपराधों के बारे में जानकारी रखें और परिवार को शिक्षित करें।
  4. संदिग्ध गतिविधि की शिकायत करें: अगर आपको ठगी का शक हो, तो तुरंत नजदीकी साइबर क्राइम थाने में शिकायत दर्ज करें।

निष्कर्ष

लखनऊ कोर्ट का यह फैसला साइबर अपराधियों के लिए एक कड़ा संदेश है। यह न केवल पीड़ितों को न्याय दिलाने की दिशा में एक कदम है, बल्कि समाज में डिजिटल अपराधों के खिलाफ जागरूकता बढ़ाने का भी एक प्रयास है। हमें सतर्क रहना होगा और तकनीकी साक्षरता को बढ़ावा देना होगा ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।

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